Monday, July 14, 2008

दक्षिण दृष्टि

हड़बड़ी और गड़बड़ी यानी येदियुरप्पा

पिछले कई वर्षों में दक्षिण भारत की राजनीति को नजदीक से देखने के बाद कर्नाटक में बी एस येदियुरप्पा की अगुवाई वाली महज छह सप्ताह पुरानी भारतीय जनता पार्टी की सरकार की तेजी हैरान कर देती है कर्नाटक या यूं कहें कि दक्षिण भारत में किसी भी राज्य सरकार ने इतने कम समय में इतनी "शानदार" उपलब्धियां हासिल नही की जितना की येदियुरप्पा सरकार कर चुकी है.हड़बड़ी में काम करने के लिए कुख्यात येदियुरप्पा ने काफी कम समय में ही कई काम "सिद्ध" कर दिखाए हैं. उन्होंने अपने सिद्धि की शुरुआत उत्तर कर्नाटक के हावेरी में उर्वरक की मांग कर रहे किसानों पर गोलीबारी की घटना से की जिसमें दो किसान मारे गए। निश्चित तौर पर उन्हें इस घटना में किसी की साजिश नजर आई और उन्होंने उर्वरक की कमी के लिए केंद्र सरकार की आलोचना करना जारी रखा। हालांकि उर्वरक की कमी के दावे को उनके ही कई अधिकारी गलत बता रहे हैं। ऐसा लगता है इतना ही काफी नहीं था, उनके वफादार मंत्रियों में से एक जिनके पास राज्य के मंदिरों की देखरेख का जिम्मा है, उनके अधिकार क्षेत्र में आने वाले सभी मंदिरों को मुख्यमंत्री के नाम से रोज सुबह "होम" कराने का आदेश जारी कर दिया। खुद को मंत्री बनाए जाने पर कुछ ज्यादा ही अनुग्रहित महसूस कर रहे अपने इस वफादार मंत्री के आदेश को येदियुरप्पा को बिना समय गंवाए वापस लेना पड़ा साथ ही उन्होंने उस मंत्री को कड़ी फटकार भी लगाई। इसके बाद मुख्यमंत्री ने एक और अभूतपूर्व कदम उठाते हुए अब तक 120 आईएएस अधिकारियों का भी तबादला कर चुके हैं। इससे उन पर यह आरोप भी लगने लगे हैं कि उन्होंने यह कदम जातिगत भावनाओं से प्रेरित होकर उठाया है।और भी ज्यादा स्तब्ध करने वाली बात यह सामने आ रही है कि मुख्यमंत्री जल्द ही मंत्रिमंडल में फेरबदल करने वाले हैं। खुद येदियुरप्पा द्वारा हवा दिए गए इन कयासों के बीच राज्य सरकार के मंत्रिमंडल के सदस्य खासे तनाव में हैं। मंत्रियों के बीच इस तरह का तनाव किसी भी सरकार के कार्यकाल के पहले ही महीने में अब तक नहीं देखा गया है। गृह मंत्री वी एस आचार्य समेत कई मंत्रियों को अपना विभाग खोने का डर सताने लगा है। ऐसा समझा जा रहा है कि बदलाव की यह संभावना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राज्य इकाई की ओर से बढ़ते दबाव के कारण है। संघ मंत्रिमंडल के मौजूदा स्वरूप से खुश नहीं है और वह इसमें बदलाव चाहता है। येदियुरप्पा हाल ही में बदलाव के बारे में चर्चा करने के लिए संघ मुख्यालय भी पहुंच गए थे।

ऐसा लगता है कि इतना ही काफ़ी नहीं था। येदियुरप्पा ने खुद को सही मायनों में हड़बडि़या साबित करते हुए अपने कैबिनेट के धनाढ्यों रेड्डी बंधुओं (बेल्लीरी के खदान मालिक) और उनके नजदीकी चेले मंत्री श्रीरामुलु को विधायकों के जोड़-तोड़ का अभियान सौंप दिया है। यह अभियान सफल भी होता दिख रहा है। कांग्रेस के सांसद आर एल जलप्पा के बेटे समेत दो कांग्रेस विधायक और दो जनता दल (एस) विधायक अपनी-अपनी पार्टियों से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो चुके हैं।
रेड्डी बंधु इन विधायकों को बेल्लारी ले गए थे। जहां डील फाइनल हो जाने के बाद वे उन्हें हेलीकाप्टर से बेंगलूर लेकर आए और फिर विधानसभा स्पीकर के सामने मार्च करवाकर इस्तीफा दिलवाया। सौदा यह हुआ कि ये विधायक भाजपा के टिकट पर फिर से उपचुनाव लड़ेंगे जिसका पूरा खर्च रेड्डी बंधु उठाएंगे। 224 सदस्यों वाली विधानसभा में अभी भाजपा के 110 सदस्य हैं जो साधारण बहुमत से तीन कम है। विधायकों का यह जोड़-तोड़ उन चार निर्दलीय विधायकों से छुटकारा पाने के लिए किया है जिन्हें मजबूरी में मंत्री पद सौंपा गया है। भाजपा अभी भी इन निर्दलीय विधायकों को भरोसेमंद नहीं मानती है। रेड्डी बंधुओं को कांग्रेस और जनता दल (एस) से और भी विधायकों को तोड़कर लाने को कहा गया है। इन दोनों शिकार ग्रस्त पार्टियों के नेता मन ही मन कुढ़ने के अलावा भाजपा को लोगों के संभावित रोष के बारे में सिर्फ़ चेतावनी ही दे पा रहे हैं. इन सब के बीच येदियुरप्पा वादों की बरसात करते हुए अपनी हडबडिया शैली में अपनी सरकार चलाते जा रहे है.

आंध्र में चीरू फैक्टर से हड़कंप

इस बीच आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई एस राजशेखर रेड्डी अपने ही पार्टी सदस्यों द्वारा उन पर भ्रष्ट होने के आरोपों को सफलता से निबटाने के बाद अब ख़ुद को एक नई चुनौती के लिए तैयार कर रहे हैं. यह चुनौती तेलगू सिनेमा के सुपर स्टार चिरंजीवी की तरफ से आ रही है। राज्य में बड़ी तादाद में मौजूद अपने प्रशंसकों के बीच चीरू नाम से मशहूर इस मेगा स्टार ने राजनीति के अखाड़े में कूदने का फैसला कर लिया है। आने वाले कुछ सप्ताहों में वह अपनी नई पार्टी का ऐलान कर देंगे। पिछले साढे़ चार साल के अपने कार्यकाल के दौरान कई चुनौतियों से गुजर चुके वाईएसआर के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती अपने नेताओं को कांग्रेस में बनाए रखना है जो चिरंजीवी की तरफ बड़ी हसरत भरी निगाहों से देख रहे हैं। वास्तव में यह समस्या सिर्फ वाईएसआर की ही नहीं है। तेलगुदेशम प्रमुख चंद्रबाबू नायडू से लेकर भाजपा और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के नेताओं को भी चीरू फैक्टर से निबटने में खासी परेशानी हो रही है क्योंकि उनके नेता और कार्यकर्ता नई पार्टी में शामिल होने की योजना बना रहे हैं।

नायडू को तो बड़ा झटका लग भी चुका है। तेदपा में नंबर दो की हैसियत रखने वाले देवेंद्र गौड़ नायडू पर यह आरोप लगाकर पार्टी छोड़ चुके हैं कि वह अलग तेलंगाना राज्य के मामले पर गंभीर नहीं हैं और लगातार इसकी उपेक्षा कर रहे हैं। वैसे तो गौड़ टीआरएस सुप्रीमो के. चंद्रशेखर राव की तरह करिश्माई नेता नहीं हैं लेकिन चिरंजीवी के साथ हाथ मिलाकर वह एक बड़ी शक्ति जरूर बन सकते हैं।
आंध्र प्रदेश के मौजूदा राजनीतिक हालात इतने उलझे हुए हैं किअभी यह कहना बेहद मुश्किल है कि आगामी चुनावों में कौन किसे नुकसान पहुंचाएगा। चिरंजीवी की आने वाली पार्टी को मिलाकर राज्य की चार पार्टियों के अलावा वामदल और भाजपा भी उलझन बढ़ाने का काम कर रहे हैं जिससे चुनावी पंडितों को आने वाले समीकरण को सुलझाने में खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। हालांकि वाईएसआर को उम्मीद है कि उनके सरकार की उपलब्धियां जिसे उनके विरोधी भी स्वीकार करते हैं आगामी चुनावों में कांग्रेस की नैया पार लगा देगी। जैसे-जैसे दिन बीतते जा रहे हैं और चुनाव की घड़ी नजदीक आ रही है आंध्र प्रदेश की राजनीतिक स्थिति रोचक होती जा रही है। अब चिरंजीवी अगले एनटीआर साबित होंगे या उनके दावे महज शोशेबाजी निकलेगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

महत्व खोते करुणानिधि

तमिलनाडु में भी राजनीतिक तस्वीर दिनोंदिन धुंधली होती जा रही है। डीएमके प्रमुख एम्. करुणानिधि के ऊपर अपने ही गठबंधन की ओर से दबाव पड़ रहा है। डा. पी. रामदौस की वन्नियार पार्टी पीएमके पहले ही गठबंधन से अलग हो चुकी है। हालांकि करुणानिधि पीएमके को केंद्र की यूपीए सरकार से अलग कर पाने में सफल नहीं हो सके जहां पी रामदौस के बेटे अंबुमणि रामदौस अभी भी केंद्रीय मंत्री हैं। डीएमके प्रमुख अपने दोनों बेटों स्टालिन और अलगीरी के साथ अपनी बंटी हुई प्रतिबद्धता के कारण भी लगातार समस्या में हैं। करुणानिधि संप्रग के प्रमुख नेता के तौर पर भी अपना महत्व खोते जा रहे हैं। पहले उन्होंने दावा किया था कि वह वामदलों और कांग्रेस के बीच समझौता करवा देंगे लेकिन जब इन दोनों के बीच हालिया टकराव हुआ तो करुणानिधि कुछ नहीं कर सके। उन्होंने यह भी कहा था रिश्ते सुधारने के प्रयास में वह दिल्ली भी जाएंगे लेकिन वह दिल्ली भी नहीं पहुंचे। वह वामदलों द्वारा संप्रग सरकार से समर्थन वापसी के घटनाक्रम को चेन्नई में बैठकर चुपचाप देखते रहे। इन सभी घटनाओं की गूंज एआईएडीएमके की नेता जयललिता के कानों में मिश्री घोल रही होगी जो दिनोंदिन भाजपा के करीब जाती दिख रही हैं।
(Courtesy Dainik Bhaskar)

1 comment:

Deena said...

ji shukriya ..... waise aap to bahut he badhiya likhte hai abhi aap ki soch tak aane mein bahut waqt lagega mujhe meri koshish jaari hai .....

HUM WO PATTE NAHI JO SHAKH SE GIR JATE HAI,
HUM WO PATTE NAHI JO SHAKH SE GIR JATE HAI,
KEH DO AANDHIYON SE KI APNI AUKAAT MEIN RAHE.......