Tuesday, June 17, 2008

बेईमानी आधी-आधी

काफी दिनों के बाद अपने गृह प्रदेश जाने का अवसर मिला तो मन उत्साह से भर उठा। दिल में उमंगें और तरह-तरह के भाव लिए घर की तरफ चल पड़ा। रास्ते भर अपने प्रदेश व अपने लोगों के बारे में ही सोचता रहा। सोचता रहा कि काफी कुछ बदला-बदला सा नजर आएगा। लेकिन मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरा सामना ऐसे वाकये से होगा, जिसे मैं लंबे समय तक नहीं भूल सकूंगा।

स्टेशन पर उतरते ही जल्दी-जल्दी सामान समेटा और बाहर आकर बस का इंतजार करने लगा। बस में बैठते ही कंडक्टर की आवाज आई, कोई भी भारी सामान ऐसे नहीं ले जा सकता, उसका किराया अलग से देना होगा। सभी सवारियां अपने-अपने सामान की तरफ देखने लगीं। तभी एक युवक ढेर सारा बिजली और लकड़ी का सामान लेकर आया और बड़े ही अधिकार भाव से दोनों तरफ की सीटों के बीच खाली जगह पर रख दिया और निश्चिंत भाव से बैठ गया। उसे यह भी सोचने की फुर्सत नहीं थी कि उसके सामान से यात्रियों को कितनी परेशानी हो रही थी।

थोड़ी ही देर में कंडक्टर महोदय आए और पान की पीक को खिड़की के बाहर बीच सड़क पर थूक कर युवक से मुखातिब होते हुए उसका गंतव्य स्थल पूछा। युवक के बताने पर उन्होंने कहा कि इसका एक सवारी के बराबर किराया लगेगा। इतना कहकर कंडक्टर ने नकद की आस में युवक की तरफ हाथ बढ़ाया। लेकिन युवक ने साफ मना करते हुए कहा, ठीक है पूरा टिकट दे दीजिए। इतना सुनते ही कंडक्टर महोदय के चेहरे पर ऐसे भाव आए मानो युवक ने उनके हक पर डाका डालने का प्रयास किया हो। जल्दी से मुंह घुमाया और पूरे पान को गेट से बाहर फेंक कर बोले, अरे भाई, इसका क्या फायदा। ऐसे में तो सारा पैसा सरकारी खाते में चला जाएगा।

इतना सुनकर मैं भी अपनी सीट के पीछे चल रहे इस संवाद से खुद को अलग न रख सका। घूम कर देखा तो कंडक्टर युवक की सीट के पास खड़ा होकर ऐसे मुस्कुरा रहा था जैसे उसने अब तक की सबसे बड़ी नीतिगत बात कह दी हो। युवक ने सिर झटक कर कहा, ठीक है कितना देना होगा। कंडक्टर बोला, पूरे किराये का तीन हिस्सा। एक हिस्से की छूट दे दूंगा। युवक ने दृढ़ता से कहा- नहीं,बेईमानी आधी-आधी। आधा तुम रखो आधा मैं। काफी देर तक दोनों अपनी-अपनी बात पर अड़े रहे। बात बनती न देख आखिरकार कंडक्टर को झुकने में ही अपना फायदा नजर आया और नकद रुपये जेब में रख अपनी सीट पर जा बैठा। उसके हाव-भाव से ऐसे लग रहा था मानो कोई बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली हो। इस बीच बस में बैठे बुद्धिजीवी नजर आने वाले लोग सिर्फ मुस्कुरा भर दिए थे।

6 comments:

Udan Tashtari said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

पी के शर्मा said...

ब्‍लोगल वार्मिंग में आपका स्‍वागत है। लिखते रहिये

Anonymous said...

aachi rachana.likhate rhe.

Anonymous said...

संतराम जी, सचमुच देश का हाल भी कुछ उस बस की तरह है और उसमें सवार लोग आम आदमी के प्रतिनिधि हैं. भ्रष्टाचार और बेइमानी में अपना हिस्सा पाकर उस युवक की तरह सब खुश रहते हैं.
बहुत अच्छा लिखा, लिखते रहें, मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें.

Unknown said...

ati sunder, is behatrin rachna ke liye shukriya.

Anonymous said...

kabiletarif rachna hai. likhte rahen.